बुधवार, 28 सितंबर 2011

क्या कहूँ! ,,बस श्रद्धांजलि!

हिमांशु जी : बीतता यौवन नहीं..! 
मेरी एक पोस्ट पर टीपते हुये सुहृद हिमांशु जी ने लिखा था : 

“....लाभ यह मिला कि अपनी एक पुरानी छोटी बह्र की ग़ज़ल के एक शे'र का भाव दिखा, भर्तृहरि की उक्ति में -
मेरा शे'र है-
बीतता है आदमी,
बीतता यौवन नहीं।” 

इन पंक्तियों को हिमांशु जी ने ‘भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता’ से उद्वेलित होकर लिखा था। बात आस-पास ही गिर रही थी। हू-ब-हू नहीं पर लगभग अवश्य! 

इसके बाद मैं स्वाभाविक तौर पर एक सुखनवर से परिचित हुआ। एक सुहृद से मिलना कितना बेहतर होता है, हिमांशु जी से ई-मेल आदि पर हुई वार्ताएँ इसकी गवाह हैं। ये गवाहियाँ हैं एक सहृदय की! एक भले इंसान की! 

अगस्त २०१० के बाद मेरा हिन्दी ब्लागिंग से एक मानसिक उचाट हुआ, परिणामतः कई ब्लागों की तरह हिमांशु जी के ब्लागों पर जाना भी न के बराबर हो गया। हाँ बज पर कभी कभी मुडिया जाता था, पर एक अंतराल आया! इसके बाद मेरे राम को फेसबुक पर मनसायन की सूझी। वहाँ मैने हिमांशु जी को फ्रेंड-रिक्वेस्ट भेजी, ‘मित्रता का शतक आपसे पूरा हो, इति लंठई’! उधर से हिमांशु जी उत्तर आया ‘आपके दोहरे शतक की कामना सहित’! सतकिया क्या, फेसबुकिया दोस्त-दरीचा तो अब हजारिया हो चला है, पर जिसकी अद्वितीय उपस्थिति के एकाएक आ गये अभाव से मन खिन्न है, वह हिमांशु जी हैं। मित्रों, यह खिन्नता कितनी रीयल होती है माध्यम भलहूँ वर्चुअल हो! मैं सनाका खा गया जब तीन दिन पहले सुना कि हिमांशु जी अब हमारे बीच नहीं रह गये हैं। जब सूचना पाया तो मित्रों की बीच लफंडरी कर रहा था। एकाएक मेरे चुपा जाने पर मित्रों ने कहा, ‘का भा हो?’ मैं क्या कहता! वर्चुअल दुनिया की खुशी या गम को हम रीयल दुनिया में नहीं शेयर कर पाते या समझा पाते और रीयल के वर्चुअल में। इस अहसास से मैं खूब गुजरा हूँ, पहले भी और उस दिन भी।

मैं हिमाशु जी से कभी परतख मिला नहीं हूँ। फोन पर भी नहीं बतियाया। मिल सकता था, बतिया सकता था, पर क्या पता था..! इलाहाबाद जाने के अगले टूर पर हुजूर मेरे निशाने पर होते, पर..! गंगातटी प्रविष्टिकार ज्ञान जी से इलाहाबाद में मिल चुका हूँ, कुछ और नाम हैं जिनसे मुलाकात शेष रही। पर इस नाम से मुलाकात तो अब कभी संभव ही नहीं, स्मृतियाँ! भर शेष रह गयीं। मिला होता तो परतख चेष्टाएँ भंगिमाएँ और भी दुखा रही होतीं! 

हिमांशु जी की खुशमिजाजी उनके लेखन में थी, उन्हीं की तरह। चाहे फिलिम पर कुछ लिख रहे हों या शेरो शायरी पर, लेकिन अपना मिजाज बरकरार रखते थे। ब्लोगिंग में आते ही कुछ समय बाद उन्होंने एक लिंक भरी पोस्ट मस्ती के साथ लिखी थी, जिसमें मैंने पाया कि कई लिंक तक मैं गया ही नहीं था, आते ही उनका पढ़ाक अंदाज बहुतों को अचंभा दे गया। थोथे से सार बीन लेना बखूबी जानते थे हिमांशु जी! 

ब्लोगिंग में ऐसे लोगों की बेहद कमी है जो अच्छी पोस्टें भी लिखते हों और अच्छी टीपें भी। पब्लिक-खींचू लोग हर जगह घर-दुवरिया देते हैं, अधिकतम एक वाक्य में फूट लेते हैं। कुछ हैं जो पोस्टें बढ़ियाँ लिखते हैं लेकिन टीपकार को उद्वेलित कर देने वाली विचार-आमंत्रणी पोस्टों पर भी अति लघु एक वाक्य या एक शब्द टपका के सै भाठ के आगे बढ़ जाते हैं! यही सब अगर कोई सहृदय पोस्टकार करता है तो मुझे मामला ब्यूरोक्रेटिक मैनेजमेंट जैसा लगता है। सहृदयता की नदी भी क्या पोस्टकार और टीपकार के बीच व्यक्तित्व के सचेत विभाजन को लेकर चलेगी, मेरी समझ से परे है यह। इस बाजारूपन से हिंमाशु जी कोसों दूर थे। वे किसी भी प्रविष्टिकार की पोस्ट पढ़ते थे, अपनी समझकर! उस पोस्ट में जीने लगते थे, अपनी समझकर! उस पोस्ट से सीखने लगते थे, अपनी समझ कर! उस पोस्ट में कुछ सिखाने की जरूरत महसूस होने पर सिखा देते थे, अपनी समझ कर! इसीलिये किसी भी पोस्ट पर उनका टीप-कर्म होता था, उसे अपनी ही समझकर! उनका यह अपुनपौ मुझे कहीं और नहीं दिखा! टीपते तो कई हैं, बेशक बड़ी टीपें, समय दे कर लिखी गयी टीपें, पर सहृदयता और खुशमिजाजी का यह मणिकांचन संयोग अन्यत्र कहाँ!   
अवधी में लोगों द्वारा लिखी ये टीपें मेरे लिये धरोहर सी हैं..! 
  
अवधी भाषा में ब्लोगिंग करते दो साल होने को है। जब ब्लोग शुरू किया था तो नहीं सोचा था कि यहाँ तक सफर चलेगा और भविष्य में करने के लिहाज से इतने आइडियाज आ जाएँगे। अपनी जिंदगी का एक सच - संभव हो यह मेरी सीमा हो - कह रहा हूँ कि मेरे हिन्दी ब्लोग पर टीप आए या न आये पर मेरे अवधी ब्लोग पर आयी एक एक टीप मेरे अवधी-प्रयोजन को संजीवनी-शक्ति देती है। अवधी पोर्टल में जो भी हुआ है, मेरे अकेले से नहीं हुआ है। मैं अपने शुभकामियों का ऋणी हूँ। हिमांशु जी ऐसे ही शुभकामी थे। उनकी कई भावपूर्ण और ज्ञानपूर्ण टीपें मेरे हिरासते मन को ढांढस देती हैं, आगे भी देंगी। यह यौवन(ऊर्जा-स्रोत) बीतेगा कहाँ। अक्षर अ-क्षर हैं, जिन्हें हिमांशु जी दे गये हैं। मेरे मन में कचोट है, सवाल है : ‘रे राजहंस वद तस्य सरोवरस्य, कृत्येन केन भवितासि कृतोपकारः?/!!’ 

भ्रष्टाचार इसी दुनिया में नहीं है, खुदा की दुनिया में भी है। हम निरुपाय हैं, किस अदालत में न्याय माँगे! किससे करें, किस यमदूत की शिकायत! इसके लिये कहाँ करें भूख हड़ताल! समय से बहुत पहले ही क्यों बुलावा आ जाता है! सुनते हो विधाता! या बे-फर्ज हो गये हो! 

हिमांशु जी के घर उनके छोटे-छोटे बच्चे हैं जो विद्यालय जाते हैं, घर के अन्य सदस्य उनके असामयिक देहावसान से शोकसंतप्त हैं। कठिन घड़ी है और असमय जाने से बढ़ी दिक्कतें भी। इस संकट की घड़ी में ईश्वर से प्रार्थना है कि घर वालों के सहाय हों। मेरी विनम्र श्रद्धांजलि!!   

13 टिप्‍पणियां:

  1. हिमांशु जी का जाना ऐसा लगा...जैसे कोई बेहद करीबी चला गया हो...

    सच है...वो किसी भी पोस्ट पर बस अपनी उपस्थिति जताने के लिए टिप्पणी नहीं करते थे...अपनी कहानी पर की गयी उनकी सारगर्भित टिप्पणियाँ याद आ रही हैं...किसी भी आलेख पर खुल कर अपने विचार रखते थे.

    उनका यूँ चला जाना बहुत ही दुखद है....उनके परिवार पर क्या गुजर रही होगी..कल्पना करना भी मुश्किल.
    ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे...और उनके परिवार को यह असहनीय दुख सहन करने का संबल प्रदान करे.

    ब्लोगजगत के लिए तो यह अपूर्णीय क्षति है.

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  2. हिमांशु जी मेरा परिचय भी टीप के माध्यम से हुआ था और चूंकि उनकी टिप्पणी थी ही ऐसी कि बरबस उन्हें जानने का दिल हो आया था, तो ऐसे व्यक्तित्व से मुलाक़ात हुयी, जो जिंदादिली की मिसाल था. वर्चुअल जगत नाते तो विचारों-बातों के माध्यम से ही बनते हैं, अपने जैसे विचार वालों से सहज ही आत्मीयता हो जाती है. फिर उसका जाना किसी अपने के जाने सा ही होता है.

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  3. बीतता है आदमी,
    बीतता यौवन नहीं।


    सही है... एक जवान मौत बहुत सदमा दे ज़ाती है.

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  4. झरे दिन जैसे मुट्ठी रेत की, या
    उमर-मछली फिसल दरिया में जाए


    ...उन्ही के ब्लॉग से ...

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  5. आपकी स्मृति शेष से भी उन्हें जाना -विनम्र श्रद्धांजलि !

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  6. हिमांशुजी से ब्लॉग पर कभी साक्षात्कार नहीं हुआ,इसका दुःख हमेशा सालता रहेगा ! हाँ,त्वितीर या फेसबुक में ज़रूर वो हमसे अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहे.कभी भी सीधे संवाद का मौका नहीं उठा पाए !ज्ञानजी के बज-सन्देश ने ज़रूर मेरा दिल द्रवित कर दिया.जैसा अब उन्हें समझ पा रहा हूँ,'इंसानों' की कम होती ब्लोगरीय-दुनिया में एक और 'इंसान' कम हो गया.डॉ. अमर कुमार के जाने के बाद यह गहरी चोट है !
    अमरेन्द्र भाई,आपको कितनी निजी क्षति हुई है यह पोस्ट पढ़कर समझी जा सकती है.उनके जाने को आपने दिल के कलम से प्रकट करने की कोशिश की है.
    ऊपरवाला भी शायद पछता रहा होगा इस कृत्य पर ! हमारी विनम्र श्रद्धांजलि उस महान व्यक्तित्व को !

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  7. हिमांशु जी को विनम्र श्रद्धांजलि !

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  8. भावुक मन से निकले शब्द मन भिंगो गए...

    यही आकर तो मनुष्य एकदम विवश हो जाता है...

    हंसी हंसी में बच्चे अक्सर एक बात कहते हैं -" भगवान् जी भी अपने यहाँ केवल अच्छे आदमी की ही उपस्थिति चाहते हैं, इसलिए उन्हें अपने घर बुलाने हडबडाये रहते हैं .. sade gale कुकर्मियों को यहाँ से uthakar le jakar we apna घर नहीं gandhana चाहते "...

    कोई परिचय कोई संपर्क नहीं था इनसे,फिर भी ह्रदय दग्ध है...

    विनम्र श्रद्धांजलि...

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  9. यह पोस्ट प्रकाशित होने के बाद ही पढ़ी थी।

    समझ नहीं आया क्या कहा जाये।

    हिमांशु जी की पोस्टें बताती हैं कि वे जीवंत और भले मन व्यक्ति थे।

    आशीष राय जी ने बाद में बताया कि कानपुर के ही रहने वाले थे। उनके पड़ोस में उनका घर था।

    उनके बच्चों और परिवार पर भारी कष्ट आ पड़ा। ईश्वर उनके परिवार को इस कष्ट को सहने की शक्ति प्रदान करे।

    दिवंगत आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि।

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  10. अफ़सोस है कि आपकी यह पोस्ट पहले नहीं पढ़ सका ...
    हिमांशु जी को मन से याद करने वाले कम नहीं हैं ....एक बड़ी क्षति हमेशा याद रहती है !
    उनके परिवार के सम्पर्क में रहने की आवश्यकता है, हो सके तो मालुम कराईयेगा ! मेरे लायक कोई कार्य हो तो तत्पर मिलूंगा !
    शुभकामनायें !

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