आचार्य रामचंद्र शुक्ल ( १८८४-१९४१ ) :
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है | आज हम हिन्दी
साहित्य के इतिहास को आचार्यवर से अलग करके नहीं देख सकते | हिंदी साहित्य के इतिहास के
'काल-विभाजन' और 'नामकरण' दोनों में हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं | इसके अतिरिक्त शुक्ल जी हिन्दी
साहित्य के प्रथम व्यवस्थित आलोचक हैं | ' व्यावहारिक' और 'सैद्धान्तिक', दोनों तरह की आलोचना को
उन्होंने संस्कार दिया | निबंध लेखन में शुक्ल जी एक युग का प्रतिनिधित्व करते हैं यानी 'शुक्ल युग ' |
आचार्य के जीवन का आरंभिक और अधिकांश समय मिर्जापुर , उ.प्र. में बीता था | यहीं उनके
साहित्यिक व्यक्तित्व का आरम्भ और विकास हुआ | यहाँ के प्रति उनकी भावुकता उनकी 'अंतिम आकांक्षा'
में व्यक्त है ---
अंतिम आकांक्षा
'' लोंगों ने मुझे बनारसी समझ लिया है , यह मेरे साथ अन्याय है | मैं मिर्जापुर का हूँ और मिर्जापुर मुझे
अत्यंत प्रिय है | मैं मिर्जापुर की एक-एक झाड़ी , एक-एक टीले से परिचित हूँ | बचपन मेरा इन्हीं झाड़ियों
की छाया में पला है | मैं इन्हें कैसे भूल सकता हूँ | ''
'' लोगों की अंतिम कामना रहती है कि वे काशी में मोक्ष लाभ करें , किन्तु मेरी अंतिम कामना
यही है कि अंतिम समय मेरे सामने मिर्जापुर का वही प्रकृति का दिव्य खंड हो , जो मेरे मन में भीतर -
बाहर बसा हुआ है | ''
'' आपने कवि सम्मलेन की आयोजना पुस्तकालय भवन में की है , यह ठीक नहीं | दूसरी बार
कवि सम्मलेन कीजिये , तब पहाड़ पर , झाड़ियों में कीजिये , जब पानी बरस रहा हो , झरने झर रहे हों ,
तब मैं भी हूँगा और आप लोग भी | तब मिर्जापुर के कवि सम्मलेन का आनंद रहेगा | यों तो कवि सम्मलेन
सर्वत्र ही होते ही रहते हैं | ''
[ साहित्य सन्देश , अप्रैल-मई , १९४१ से साभार ]
{ मृत्यु से कुछ दिनों पूर्व आचार्य शुक्ल मिर्जापुर गए थे | वहां २५-२६ जनवरी १९४१ को कवि सम्मलेन
आयोजित किया गया था | आचार्य शुक्ल को कवि सम्मलेन में सभापति के रूप में बुलाया गया था | आचार्य
शुक्ल और सोहनलाल द्विवेदी के मध्य हुई बातचीत का यह अंश है }
[ आचार्य रामचंद्र शुक्ल ग्रंथावली,भाग-८,संपा.डा.ओ.पी.सिंह, से साभार ]
एक बात और , काशी के मोक्ष लाभ से खुद को अलग रखने के सम्बन्ध में सहज ही कविवर कबीर दास का
ध्यान आ गया और उनकी प्यारी सी भोजपुरी कविता की पंक्ति , ---
'' लोकामति के भोरा रे ..
जौ कासी तन तजै कबीर रामहिं कौन निहोरा रे .. ''
मेरे बारे में :
जवाब देंहटाएं"मै राहगीर हूँ, मंजिल कहाँ..? नहीं मालूम, मुसलसल चल रहा हूँ,काश यही मंजिल हो... "
त्रिपाठी साहब, आपके इन शब्दों पर जब नजर गई तो ऐसा लगा कि इन शब्दों से कुछ अपना भी वास्ता है !
हां, आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी के बारे में सस्न्स्मरण अच्छा लगा, लेकिन ये भी कहूंगा कि उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिये था अब वो चाहे बनारस के हो या फिर मिर्जापुर के हम तो उन्हें हिन्दुस्तानी समझते है !
""आज हम हिन्दी साहित्य के इतिहास को आचार्यवर से अलग करके नहीं देख सकते"""
जवाब देंहटाएंआपके विचारो से शतप्रतिशत सहमत हूँ . आचार्यवर हिंदी साहित्य के पुरोधा थे ... बढ़िया आलेख प्रस्तुति के लिए आभार.
बढ़िया आलेख प्रस्तुति के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत बडिया जानकारी त्रिपाठी जी को विनम्र श्रद्धाँजली।
जवाब देंहटाएंउनका जन्म भूमि से प्रेम देख मन गदगद हो गया. अच्छा लगा पढ़ना.
जवाब देंहटाएंबनारसी नहीं मिर्जापुरी सही, चलिए यही सही.
जवाब देंहटाएंहिन्दी के मूर्धन्य विद्वान् के बारे में आपकी लेखनी से कुछ और जानकर अच्छा लगा ,बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंआचार्यजी के बारे में और नयी जानकारी प्राप्त हुई आभार ...!!
जवाब देंहटाएंओह. आभारी हूँ..ये जानकारी संग्रहणीय है. एक खास शोध के तहत ही कुछ अनमोल मिलता है..इसके लिए आपको बधाई देता हूँ और आशा/अपेक्षा/प्रार्थना करता हूँ कि ऐसी जानकारियाँ और भी देते रहिए..!
जवाब देंहटाएंउम्दा..!
सुंदर लेख और आचार्य राम चंद्र शुक्ल जी के बारे में आपके माध्यम से पढ़ कर और भी अच्छा लगा ........
जवाब देंहटाएंBadiya post...badhai...
जवाब देंहटाएंशुक्ल जी जब भावुक होते हैं तो कुछ उट पटांग से लगने लगते हैं ! :) :) :)
जवाब देंहटाएंमैंने तो टिप्पड़ी का रिस्क ले लिया …….देखूं आगे क्या होता है …….:)
जवाब देंहटाएं@Aarjav
जवाब देंहटाएंअरे भाई आलोचक भी भावुक हो सकता है :)
....... पारधी भी बेटी की विदाई पर रोते होते हैं .......
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बड़े लोगों से बड़े रिस्क की उम्मीद करता हूँ ..
'' रिस्क '' लिए बिना जिन्दगी चलती है कहीं !
आप उनलोगों में से हैं जो चुन-चुनकर लिखते हैं, कम लिखते हैं, परन्तु गुणात्मक लिखते है. मैंने आपकी कविता भी पढ़ी और लेख भी. शानदार! but ....be optimistic. this world is a beautiful place. feel it, live it and enjoy it.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया. साधुवाद.
जवाब देंहटाएंअपने कई प्रिय ब्लौगरों के पृष्ठों पर आपकी टिप्पणियों ने प्रभावित किया और आज मेरी अदनी-सी ग़ज़ल की तारीफ़ ने विवश कर ही दिया इस तरफ रुख करने को।
जवाब देंहटाएं"कब्र में दाखिल होता आदमी" ने अजब ढ़ंग से मन की परतों को छुआ तो रामचंद्र शुक्ल जी पे इस आलेख ने कुछ पुरानी यादों को जब मेरी दीदी इन पर शोध कर रही थी।
आप नामवर जी के अधीन शोधरत हैं ना?
बहुत बढिया. साधुवाद.
जवाब देंहटाएं... prabhaavashaali prastuti !!!
जवाब देंहटाएंलगता है आपने खजाना छुपा रक्खा है
जवाब देंहटाएंआगे और पाने का मन बना रहेगा....
मेल तो कोई नहीं मिला है आपका, जैसा कि आपने लिखा है इस बाबत मेरे ग़ज़ल की हौसलाअफ़जाई में...
जवाब देंहटाएंअमरेंद्र जी ......... हमारी तरफ से आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की मंगल कामनाएँ ........
जवाब देंहटाएंbhaiya, naya saal dhamaakedaar ho !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नया साल आपके लिए मंगलमय हो
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