गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

गुप्तार घाट, एक मनोरम भूमि..!

गुप्तार घाट फैजाबाद जिले(उत्तर-प्रदेश) में स्थित सरयू का वह किनारा है जो अयोध्या के घाटों से कई मायनों में अलग दिखता है। यहाँ न तो अयोध्या सी व्यस्तता है, न पंडों की मौजूदगी, न वैसी बाबागिरी, न रूढ़ अर्थ में धार्मिक परिवेश है। जब सब अच्छा छीज रहा है, चिंता होती है कि कब तक इसका चारुत्व बचा रहेगा। जिस अर्थ में मीरा ने अपने मन को ‘चलो मन गंगा-जमुना तीर’ कहा, सरयू का यह किनारा उस अर्थ में अस्तित्ववान है। यहाँ हम एक ऐसा एकांत पाते हैं जिसमें मनहूसियत नहीं है बल्कि सजग करने वाली शान्ति है। धार्मिक ग्रंथ कहते हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने यहीं जल-समाधि ली थी। शान्ति की खोज के लिये इससे बेहतर जगह क्या होती। उनके आत्मीय भाई लखन नहीं रह गये थे, जिनके लिये उनका हृदय द्रवित होता था! शक्ति-शर से बिंधे लखन यही कहते थे - हृदय घाव मेरे, पीर रघुवीरे! लोकोपवाद से उनका उद्विग्न मन सीता को छोड़ चुका था। घर छूटा था तो लोक के भरोसे टिके थे, जब लोक ने ठुकराया तो कहाँ मिलती शान्ति भला! इसी घाट पर आकर फिर यहीं के हो गये। यहीं जल-समाधि का वरण किया, हमेशा के लिये!
शास्त्रों में गुप्तार-घाट की महिमा का बखान हुआ है, गुप्तार घाट पर एक जगह पर लिखा-टंगा एक चित्र ले आया हूँ: 
मैं बहुत छोटा था जब गुप्तार घाट पहली बार अम्मा के साथ गया था और वह बताती थीं कि कहाँ कौन सी जगह है। यहीं पर कार्तिकेय सेवासदन – एक आध्यात्मिक केंद्र - है। कार्तिकेय नामक संत यहीं पर ५०-६० वर्ष पूर्व थे, भक्ति परंपरा के संत!
वहाँ के लोगों में इनकी कुछेक कथाएँ चर्चित रहतीं, जैसा कि अक्सर महापुरुषों से जुड़ी कथाएँ लोक मानस में व्याप जाया करती हैं। मेरा कार्तिकेय महराज से परिचय चित्र में लिखित पँक्तियों के जरिये हुआ। इसे पढ़कर मुझे मध्यकालीन भक्त कवियों के पदों का स्मरण हो आया। वहाँ पर मौजूद एक पुजारी जी से मैंने कार्तिकेय जी के और पदों को पढ़ने की जिज्ञासा रखी लेकिन उन्हें मेरी बात अधिक समझ में नहीं आयी। हमारे समाज में रचनाओं को लेकर जो लापरवाही होती है, संभव है उनकी रचनाएँ भी इसका शिकार हो गयी हों। 
      गुप्तार घाट का सबसे आकर्षक पहलू यहाँ का प्राकृतिक परिवेश है। यहाँ व्यापक वन-भूमि है। इसी भूमि पर कैंट – डोगरा रेजीमेंट सेंटर – है, जिसका कंपनी गार्डेन दर्शनीय स्थानों में एक है। यहाँ जाने के लिये आपको कई किलोमीटर हरी-भरी भूमि से गुजरना पड़ता है। मेहनत करके पहुँचने पर तट अपनी नैसर्गिक सुंदरता से पूरी थकान मिटा देता है। यहाँ मैं कितनी बार गया हूँ मैं खुद नहीं जानता। जाने पर कई घण्टे बैठता। घाट पर चाय की कुछ ही दुकानें हैं, ज्यादा भीड़ नहीं जुटती। न ही बात-चीत का अधिक शोर! घाट पर बने चबूतरों से मल्लाहों के छोटे बच्चे नदी में कूदने की कलाबाजी में निपुण दिखते हैं। गति और शान्ति सधा संतुलन! 
      इस मनोहारी जगह ने अतीत में बहुत लोगों को खींचा है। गुप्तार घाट को ब्रिटिश कालीन पेंटर विलिएम ओरम ने अपनी कूची से उकेरा है जिसे देखते हुये अपनी आँखों देखे दृष्य  का   मूर्तन हो जाता है। विगत और वर्तमान के बीच मन कई तार मिलाने लगता है। इसे ओरम ने तब बनाया था जब अवध की राजधानी फैज़ाबाद से लखनऊ चली गयी थी। अंदाजन १७९० से १८२० ई. के मध्य। चित्र यह रहा:
चित्र की ही तरह आज भी नदी पार करने के लिये नावें यहाँ सजी रहती हैं। किसी किसी नाव में यात्रियों के स्वागत के लिये फूलों से – WELCOME – लिखा रहता है। नदी पार करने के लिये लोग पहले भी गुप्तार-घाट का मार्ग चुनते रहे हैं। इसी सिलसिले में गुप्तार घाट से जुड़ी घटना है जहाँ नदी पार कर रहे अंग्रेज अधिकारियों के परिजनों को नदी में ही डुबा दिया गया था। बात १८५७ ई. के संग्राम की है, अवध इस संग्राम का केंद्र रहा है: 
अब फैज़ाबाद से दूर हूँ, वहाँ होता तो इस मनोरम भूमि पर कई बार गया होता। बाहर रहने से फैज़ाबाद छूट चुका है, जब भी कभी जाना होता है तो यहाँ जरूर जाता हूँ। इंटरनेट पर इस घाट की याद को, इसकी शान्ति को, इसकी ऊर्जा को अपने साथ बनाये रखने के लिये पहले से मौजूद ब्लोग का डोमेन-रूपांतर guptarghat.com कर लिया हूँ। इस माह मित्रों के बीच ब्लागीय लेखन का ढाई साल पूर्ण हो गया है। सभी मित्रों की शुभकामनाओं का आभारी हूँ, आगे भी यात्रा जारी रहे!


संतोष जी का कमेन्ट आया है, जानकारी की दृष्टि से विस्तार करता हुआ, इसे पोस्ट के साथ अपडेट के रूप में जोड़ रहा हूँ.
अपडेट : संतोष जी   कहिन  -- '' अमरेन्द्र भाई ! गुप्तार घाट का बखूबी चित्रण आपने किया ! अभी नव वर्ष के आगमन पर वहां मित्रों के साथ गया था और चांदनी रात में नौका विहार का आनंद भी लिया ! कुछ मौजूं बातें भी बताता चलूँ ! घाट के किनारे ही एक शिला पट्टिका है , जो सन १८५० (स्मृति के आधार पर कह रहा हूँ ) का है और उसमे जनता के लिए कैन्टोमेंट के उस समय के अंग्रेज कमिश्नर का सन्देश है कि घाट पर कपड़ा साफ़ करना और गन्दगी फैलाना सख्त मना है ! एक और बात - उस शिला पट्टिका में वह जगह "गुप्तार घाट " के नाम से नहीं बल्कि " Ghaat at Saryu " के नाम से संबोधित की गयी है ! दुसरी बात- घाट के सामने का मुख्य मंदिर कब और किसने बनवाया , ये मुझे नहीं पता है हालकि मुख्य द्वार के ऊपर संस्कृत नुमा कुछ लिखा है लेकिन उसे मैं समझ नहीं पाया ! तीसरी बात- घाट के अंतिम सिरे पर एक किला नुमा ढांचा है जिसकी दीवारे अब कई जगह से ढह गयी हैं वो भी काफी पुराना लगता है ! उसका भी इतिहास नहीं पता चला ! चौथी बात -घाट का तो हालिया वर्षों में जीर्णोद्धार किया गया है लेकिन घाट की संरचना और उसमे प्रयुक्त सामग्री को भी देखा कर लगता है कि वह कई सदियों पुराना है और घाट को किसने बनवाया ये भी नहीं पता ! लब्बोलुआब ये है- कि खोजने और जानने लायक वहां बहुत है ! ''

21 टिप्‍पणियां:

  1. लगभग चार बर्ष पूर्व मैंने भी इस घाट पर स्नान किया. वास्तव में बहुत आनंद आया. लगभग एक घंटे का समय इस स्थल पर बिताया. मेरे एक दोस्त जो की गाजिआबाद वासी है उन्हें यहाँ बहुत अच्छा लगा सुबह ८.३० बजे खुली जगह में मीठी सर्दी के मौसम में स्नान कर व स्नानोपरांत चन्दन आदि लगाकर सूर्या की किरणों में बैठकर शांति से धूप का आनंद लेते हुए. बाद में वे अक्सर इस पूज्य स्थल पर आते रहे.

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    1. आप परतख लाभ लिये हैं यहाँ की शान्ति का, सो अधिक क्या कहना!

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  2. अमरेन्द्र भाई ! गुप्तार घाट का बखूबी चित्रण आपने किया ! अभी नव वर्ष के आगमन पर वहां मित्रों के साथ गया था और चांदनी रात में नौका विहार का आनंद भी लिया ! कुछ मौजूं बातें भी बताता चलूँ ! घाट के किनारे ही एक शिला पट्टिका है , जो सन १८५० (स्मृति के आधार पर कह रहा हूँ ) का है और उसमे जनता के लिए कैन्टोमेंट के उस समय के अंग्रेज कमिश्नर का सन्देश है कि घाट पर कपड़ा साफ़ करना और गन्दगी फैलाना सख्त मना है ! एक और बात - उस शिला पट्टिका में वह जगह "गुप्तार घाट " के नाम से नहीं बल्कि " Ghaat at Saryu " के नाम से संबोधित की गयी है ! दुसरी बात- घाट के सामने का मुख्य मंदिर कब और किसने बनवाया , ये मुझे नहीं पता है हालकि मुख्य द्वार के ऊपर संस्कृत नुमा कुछ लिखा है लेकिन उसे मैं समझ नहीं पाया ! तीसरी बात- घाट के अंतिम सिरे पर एक किला नुमा ढांचा है जिसकी दीवारे अब कई जगह से ढह गयी हैं वो भी काफी पुराना लगता है ! उसका भी इतिहास नहीं पता चला ! चौथी बात -घाट का तो हालिया वर्षों में जीर्णोद्धार किया गया है लेकिन घाट की संरचना और उसमे प्रयुक्त सामग्री को भी देखा कर लगता है कि वह कई सदियों पुराना है और घाट को किसने बनवाया ये भी नहीं पता ! लब्बोलुआब ये है- कि खोजने और जानने लायक वहां बहुत है !

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    1. बहुत बढ़िया। आपकी बातन का हम अपडेट के रूप मा जोड़ि दिहे हन्‌। :)

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  3. अमरेन्द्र,
    ऐतिहासिक फ़ैज़ाबाद के इस शांत खंड गुप्तार घाट की सचित्र जानकारी के लिये आभार! हिन्दी ब्लॉगिंग में भी बहुत कुछ अच्छा रचा जा रहा है इसके लिये किसी साक्ष्य की आवश्यकता नहीं है।

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  4. गुप्तार घाट से आप बड़े मन से जुड़े हो.पुरानी यादें कई बार बहुत बेचैन कर देती हैं,बकिया ऐसी स्मृतियों से हम कुछ देर के लिए ही सही 'उन दिनों' और 'उन जगहों' पर पहुँच जाते हैं.
    एक डोमेन के रूप में इसे अपना बना लिया है,अब हमेशा साथ रहेगा !
    ढाई-साला बधाई भी !

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    1. इसी लिये यादों से जोड़ लिया इस मनोरम भूमि को!

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  5. एक बार हम भी हो आए हैं। ब्लॉग के ढाई बरस पूर्ण होने पर हमारी शुभकामनाएं स्वीकार करें आर्य।

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    1. आप अयोध्या जाते रहते हैं, अगली बार ढेर वक्त बिताइयेगा। आभार..!

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  6. सचित्र,सुन्दर जानकारी.ब्लोग्स में वाकई सार्थक लेखन होता है.

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  7. sarth lekh,kafi achcha lga. mai bhi kee bar guptarghat ja chuki hu. atyant shanti milti hai.saryu ndi ka vistar man ko aahladit kar deta hai. naoka vihar bhi kiya hai.
    tankx for such pictures of the ghat.

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    1. कंचन जी, मुझे खुशी हुई यह जानकार की आप भी गुप्तार-घाट के नैसर्गिक सौन्दर्य को आत्मसात की हुई हैं!

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  8. बहुत ही शांति देनेवाला है यह गुप्तारघाट !!!!!

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