शुक्रवार, 9 मार्च 2012

चचा ग़ालिब (१) : खायेंगे क्या?

दिल्ली की सड़कें, पेंटिंग: मुरलीधर सदाशिव जोशी
भी आदमी बदलता रहा, कभी परिवेश बदलता रहा, कभी सोच बदलता रहा, कभी दौर बदलता रहा और इन सबके बीच दिल्ली को देखने वाली निगाह भी बदलती रही। शायरों को दिल्ली ने खूब मौजियाया और तरसाया भी। मजा और सजा दोनों। दिल्ली को छोड़कर जौक कहीं और जाने के लिये राजी न थे, दिल्ली के जादू में कैद थे, ‘कौन जाए जौक, दिल्ली की गलियां छोड़कर’! जौक रमे रहे दिल्ली में। दिल छीनने में दिल्ली बेजोड़ रही, ‘दिल वली का ले लिया दिल्ली ने छीन’! लेकिन चचा ग़ालिब ने दिल्ली के एक दूसरे रुख/सिम्त को भी महसूसा और दिखाया, शायद यह दौर वह रहा हो जिसके बारे में उन्होंने पहले कहा था, ‘हर एक रोज यहां हुक्म नया होता है / कुछ समझ में ही नहीं आता कि क्या होता है’! 

चचा ग़ालिब का एक शेर इन दिनों दिलो-दिमाग पर जैसे कब्जा जमा बैठा हो। हाजिर है यह शेर और उस पर पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का बतलाया भावार्थ: 

है अब इस मामूरे में क़हते-ग़मे-उल्फ़त, ‘असद’,
हमने यह माना कि दिल्ली में रहें, खायेंगे क्या? 

उग्र जी द्वारा बतलाया भावार्थ: “ ’असद’! अब इस जनपद में प्रेम के कष्टों की कठिन कमी हो गई है(प्राण ले लेनेवाले प्राण-प्यारे कहीं दिखाई ही नहीं देते)! हम दिल्ली में ही रहें, आपने ठीक फ़रमाया, हमने माना, हाँ। पर, प्रश्न यह है कि खायेंगे क्या? जब सुंदर लोग हों ही नहीं और अपनी ख़ूराक हो रूपमधुपान, तो ऐसे दिल्ली में रहकर क्या भाड़ झोंकें जिसमें मनमोहन चिराग़ लेकर ढूढ़ने पर भी नजर न आएँ?”

11 टिप्‍पणियां:

  1. आप की खुराक ही तगड़ी हो तो क्या,
    वैसे भूखे तो कई और,चौराहों पे मिलेंगे !


    रूप का रसपान कराने में दिल्ली बहुत बेदर्द है.कई बार तो लगता है कि यहाँ आये ही क्यों ?
    यहाँ जो रह ले फिर कहीं और रहने लायक नहीं रहता !

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  2. यह तो खा पी कर तृप्त हुए ग़ालिब का शेर लगता है, भूख लगी हो तो तरकारी भी पकवान लगे!

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  3. हंस या तो मोती चुनेगा या फिर भूखा मर जायेगा... ग़ालिब मियां भी ऐसे ही रहे होंगे!!!

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  4. प्रश्न का उत्तर तो चाहिये ही होगा।

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  5. पहले भोजन बड़ी समस्या थी अह रहने का स्थान भोजन से बड़ी समस्या है।

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  6. इत्ता तो खा चुके चचा, अब थोड़ा उपवास सही!

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  7. अब समूचा मुल्क दिल्ली, भूख बसती हर गली
    सब सहें, क्या हम कहें, कोइ बतलायेंगे क्या?

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  8. राम का नाम लें या चुनें अल्लाह का ' वारसी '
    अब रोटी की कवायद की भी तकनीकें हैं ...

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