गीतकार अंजन के साथ अनूप |
गोपालगंज-बिहार में जन्मे राधेमोहन चौबे ‘अंजन’ भोजपुरी के ख्यातनाम गीतकार हैं। ‘कजरौटा’ समेत दर्जनों गीत-संग्रहों द्वारा इन्होंने भोजपुरी भाषा को समृद्ध किया। भरतशर्मा व्यास जैसे कई गायकों ने इनके गीतों को अपना कंठ दिया है। ये दो गीत - एक, दो - सुने जा सकते हैं। प्रस्तुत है राधामोहन चौबे ‘अंजन’ से अनूप कुमार की बातचीत: संपादक
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आज उम्र के इस पड़ाव पर आप कैसा महसूस कर रहे हैं ?
अंजन- एक तरह से बुढ़ापा भी एक सन्यास है जो ऊर्जा प्रकृति से शरीर को मि्ली थी वो धीरे-धीरे अब क्षीण हो रही है। बुढ़ापे के दो ही सुख हैं संतति सुख और भोजन सुख ; भरा पूरा परिवार है और मेरे परिवार जन खूब सेवा कर रहे हैं इससे बड़ा सुख और क्या हो सकता है ? बहुत सुखद अनुभव हो रहा है। ये जीवन का संध्या काल है और अवसान का समय भी निकट है।
भोजपुरी के तरफ आपका झुकाव कब से हुआ ?
अंजन- बचपन से ही भोजपुरी से गहरा लगाव रहा है क्योंकि यह माँ की बोली है ना, माँ के दूध के साथ मिली हुई है। मैं जब छठवीं कक्षा में पढता था तो उस समय विद्यालय में श्री धरिच्छ्न मिश्र जी कक्षा लेने आते थे और समस्या पूर्ति कराते थे उसी समय मैंने उनको एक कविता सुनायी थी वो बहुत खुश हुए, उन्होंने मेरी पीठ थपथपायी और उसी दिन से मुझे लगा की काव्य-साहित्य में मैं कुछ अच्छा कर सकता हूँ।
आपकी शिक्षा-दीक्षा किस प्रकार हुई ?
अंजन- सच तो यह है कि मेरे माँ को केवल बीस तक ही गिनती आती थी और मेरे पिता जी पांच भाई थे तथा मैं उन पांच भाइयों के बीच में अकेली संतान था। मैं पढने में कुशाग्र बुद्धि वाला था और नक़ल के बारे में थे हम जानते ही नहीं थे कि यह क्या होता है ? जब मैं दसवीं का इम्तिहान देना था तब मुझे चेचक हो गया था, बड़ी कठिनाई से परीक्षा दिया और प्रथम श्रेणी से पास हुआ। आगे पढने की सामर्थ्य नहीं थी मगर लालसा जरुर थी। बी.ए. में पुरे बिहार में स्वाध्याय के बल पर तेरहवां स्थान आया था । मैं नौकरी के लिए किसी भी क्षेत्र में जा सकता था मगर माँ-बाप की सेवा करने के लिए शिक्षा क्षेत्र में चला गया। उस समय टीचर ट्रेनिंग में बिहार में पहला स्थान आया था हमारे नोट्स पढ़ के न जाने कितनो ने एम.ए. बी.ए. और क्या-क्या कर लिए।
गीत साहित्य का प्राण तत्त्व है और इसकी रचना किस परिवेश में होती है किसी ने कहा है कि
" कोई गीत नहीं गाता है,
गीत-अधर का क्या नाता है
जिसमे जितना दर्द भरा है
वो उतना मीठा गाता है " आपकी क्या राय है ?
अंजन- गीत तो दर्द की ही उपज है और गीत ऐसा होना चाहिए जिसमे प्राण तत्त्व हो। गीत में अल्पजीविता नहीं होनी चाहिए आज कल के गीत तो ऐसे बन रहे हैं जो कुछ दिन के बाद बड़ी आसानी से बिसर जाते हैं और एक समय-अवधि के बाद तो उनकी याद भी नहीं आती। एक दर्द से उपजने वाले गीत का अनुभव मैं बता रहा हूँ। मेरे पास थोड़ी सी जमीन है बच्चे उनपर खेती करते हैं। धान की रोपनी हो चुकी थी, नहर में पानी नहीं था और बारिश की कोई गुंजाइश नहीं थी। हम खेत देखने के लिए गए दृश्य कुछ ऐसा था कि धरती में दरारे पड़ गयी थी लग रहा था मानो पानी के अभाव में धरती कि कलेजा फट सा गया हो। बड़ा दर्द हुआ जब घर लौटा तो एक गीत लिखा। भगवान की ऐसी कृपा है कि जब-जब उस गीत को मन से गा देता हूँ तो न जाने कहाँ से बारिश शुरू हो जाती है। वह गीत कुछ इस तरह है
का कही सचहूँ परान बाड़ बदरा
जान बाड़ बदरा, पहचान बाड़ बदरा
अबही ले चौरा में चान ना फुलाईल
चुनरी-सुनहरी सरेह न रंगाईल
कजरी कियरिया के शान बाड़ बदरा
अबही ले धरती न पलना झुलवली
धनवा शुगनवा ना गोद में खेलावली
आ जईब अमृत वरदान बड़ा बदरा!
आकाशवाणी में आपने बहुत दिन अपनी सेवाएं दी, क्या अनुभव रहा ?
अंजन- 30 जून 1962 से ही आकाशवाणी से जुड़ गया तमाम गीतों का प्रसारण होता रहा। उसके बाद जगदीश चन्द्र माथुर से मेरी मुलाकात हुई वो बहुत मानते थे मुझ। बहुत दिनों तक उनके सानिध्य में रहा। रात-रात भर उनके साथ मंच पर रहता था। वह मुझसे वज्जिका भाषा में गीत लिखवाते थे और जब वो कहते मैं गीत लिख देता था।
भोजपुरी इतनी समृद्ध भाषा होने के बाद भी आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं हो पाई है इसके बारे में आपका क्या विचार है ?
अंजन-भोजपुरी के विकास के नाम पर आज बहुत सारी संस्थाएं बन गयी है। दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता तमाम जगह लोग भोजपुरी के मठ बना कर मठाधीश बने बैठे हैं। इनको भोजपुरी से कुछ लेना देना नहीं है ये बस अपने व्यक्तित्व के विकास में लगे हुए हैं। जब भोजपुरी का साहित्य समृद्ध हो जायेगा तो भोजपुरी को अपने आप आठवीं अनुसूची में मान्यता मिल जाएगी। आजकल भोजपुरी में कोई ऐसा साहित्यकार भी नहीं है जो इसमें प्राण का संचार कर सके। कहाँ कोई भोजपुरी में वैसा लिख रहा है जैसा धरिच्छ्न मिश्र ने लिखा है कि
कौना दुखे डोली में रोवत जाली कनिया
छुट गईले माई-बाप छुट गईले दुनिया
एही दुखे डोली में रोवत जाली कनिया
भोजपुरी तो जो है वो सीधे गंगा है भोजपुरी को जो सम्मान चाहिए वो सही सम्मान आज तक नहीं मिल सका, मुझे इस बात का बड़ा दुःख है।
आज भोजपुरी में अश्लील गीतों के लिखने और गाने का सिलसिला चला है उसके सम्बन्ध में आपका क्या कहना है ?
भोजपुरी के तरफ आपका झुकाव कब से हुआ ?
अंजन- बचपन से ही भोजपुरी से गहरा लगाव रहा है क्योंकि यह माँ की बोली है ना, माँ के दूध के साथ मिली हुई है। मैं जब छठवीं कक्षा में पढता था तो उस समय विद्यालय में श्री धरिच्छ्न मिश्र जी कक्षा लेने आते थे और समस्या पूर्ति कराते थे उसी समय मैंने उनको एक कविता सुनायी थी वो बहुत खुश हुए, उन्होंने मेरी पीठ थपथपायी और उसी दिन से मुझे लगा की काव्य-साहित्य में मैं कुछ अच्छा कर सकता हूँ।
आपकी शिक्षा-दीक्षा किस प्रकार हुई ?
अंजन- सच तो यह है कि मेरे माँ को केवल बीस तक ही गिनती आती थी और मेरे पिता जी पांच भाई थे तथा मैं उन पांच भाइयों के बीच में अकेली संतान था। मैं पढने में कुशाग्र बुद्धि वाला था और नक़ल के बारे में थे हम जानते ही नहीं थे कि यह क्या होता है ? जब मैं दसवीं का इम्तिहान देना था तब मुझे चेचक हो गया था, बड़ी कठिनाई से परीक्षा दिया और प्रथम श्रेणी से पास हुआ। आगे पढने की सामर्थ्य नहीं थी मगर लालसा जरुर थी। बी.ए. में पुरे बिहार में स्वाध्याय के बल पर तेरहवां स्थान आया था । मैं नौकरी के लिए किसी भी क्षेत्र में जा सकता था मगर माँ-बाप की सेवा करने के लिए शिक्षा क्षेत्र में चला गया। उस समय टीचर ट्रेनिंग में बिहार में पहला स्थान आया था हमारे नोट्स पढ़ के न जाने कितनो ने एम.ए. बी.ए. और क्या-क्या कर लिए।
गीत साहित्य का प्राण तत्त्व है और इसकी रचना किस परिवेश में होती है किसी ने कहा है कि
" कोई गीत नहीं गाता है,
गीत-अधर का क्या नाता है
जिसमे जितना दर्द भरा है
वो उतना मीठा गाता है " आपकी क्या राय है ?
अंजन- गीत तो दर्द की ही उपज है और गीत ऐसा होना चाहिए जिसमे प्राण तत्त्व हो। गीत में अल्पजीविता नहीं होनी चाहिए आज कल के गीत तो ऐसे बन रहे हैं जो कुछ दिन के बाद बड़ी आसानी से बिसर जाते हैं और एक समय-अवधि के बाद तो उनकी याद भी नहीं आती। एक दर्द से उपजने वाले गीत का अनुभव मैं बता रहा हूँ। मेरे पास थोड़ी सी जमीन है बच्चे उनपर खेती करते हैं। धान की रोपनी हो चुकी थी, नहर में पानी नहीं था और बारिश की कोई गुंजाइश नहीं थी। हम खेत देखने के लिए गए दृश्य कुछ ऐसा था कि धरती में दरारे पड़ गयी थी लग रहा था मानो पानी के अभाव में धरती कि कलेजा फट सा गया हो। बड़ा दर्द हुआ जब घर लौटा तो एक गीत लिखा। भगवान की ऐसी कृपा है कि जब-जब उस गीत को मन से गा देता हूँ तो न जाने कहाँ से बारिश शुरू हो जाती है। वह गीत कुछ इस तरह है
का कही सचहूँ परान बाड़ बदरा
जान बाड़ बदरा, पहचान बाड़ बदरा
अबही ले चौरा में चान ना फुलाईल
चुनरी-सुनहरी सरेह न रंगाईल
कजरी कियरिया के शान बाड़ बदरा
अबही ले धरती न पलना झुलवली
धनवा शुगनवा ना गोद में खेलावली
आ जईब अमृत वरदान बड़ा बदरा!
आकाशवाणी में आपने बहुत दिन अपनी सेवाएं दी, क्या अनुभव रहा ?
अंजन- 30 जून 1962 से ही आकाशवाणी से जुड़ गया तमाम गीतों का प्रसारण होता रहा। उसके बाद जगदीश चन्द्र माथुर से मेरी मुलाकात हुई वो बहुत मानते थे मुझ। बहुत दिनों तक उनके सानिध्य में रहा। रात-रात भर उनके साथ मंच पर रहता था। वह मुझसे वज्जिका भाषा में गीत लिखवाते थे और जब वो कहते मैं गीत लिख देता था।
भोजपुरी इतनी समृद्ध भाषा होने के बाद भी आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं हो पाई है इसके बारे में आपका क्या विचार है ?
अंजन-भोजपुरी के विकास के नाम पर आज बहुत सारी संस्थाएं बन गयी है। दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता तमाम जगह लोग भोजपुरी के मठ बना कर मठाधीश बने बैठे हैं। इनको भोजपुरी से कुछ लेना देना नहीं है ये बस अपने व्यक्तित्व के विकास में लगे हुए हैं। जब भोजपुरी का साहित्य समृद्ध हो जायेगा तो भोजपुरी को अपने आप आठवीं अनुसूची में मान्यता मिल जाएगी। आजकल भोजपुरी में कोई ऐसा साहित्यकार भी नहीं है जो इसमें प्राण का संचार कर सके। कहाँ कोई भोजपुरी में वैसा लिख रहा है जैसा धरिच्छ्न मिश्र ने लिखा है कि
कौना दुखे डोली में रोवत जाली कनिया
छुट गईले माई-बाप छुट गईले दुनिया
एही दुखे डोली में रोवत जाली कनिया
भोजपुरी तो जो है वो सीधे गंगा है भोजपुरी को जो सम्मान चाहिए वो सही सम्मान आज तक नहीं मिल सका, मुझे इस बात का बड़ा दुःख है।
आज भोजपुरी में अश्लील गीतों के लिखने और गाने का सिलसिला चला है उसके सम्बन्ध में आपका क्या कहना है ?
अंजन- भोजपुरी तो आज कल अर्थकामी हो गईं है, इससे भोजपुरी का अस्तित्व खतरे में जा रहा है। आजकल तो ऐसे गीत लिखे जा रहे हैं जिसे आप पुरे परिवार के साथ बैठ कर सुन नहीं सकते। मैं तो अध्यात्मिक ज्यादा लिखता हूँ अश्लीलता से मुझे घृणा है। जब भी कोई गायक मेरे गीतों को गाने के लिए मुझे मांगकर ले जाता है तो मैं उससे सिफारिश करता हूँ की कृपया आप इसे अश्लील गीतों के बीच में मत गाना। ऐसा नहीं है, हमने भी गीत लिखे हैं जो जन -जन के कंठ के आहार हो गए। मैंने बहुत पहले लिखा था कि,
बिजली में तड़प केतना होला अनजान बदरिया का जानी,
मनवा के मनवे समझी अंजान नजरिया का जानी।
कुछ बेचे वाला बेहसे वाला कुछ मोलभाव समझ लेला,
गठरी-गठरी के मोल अलग अंजान बजरिया का जानी।
मैं भरत शर्मा को बहुत मानता था, मैंने बहुत सारे गीत भी दिए उन्हें गाने के लिए, लेकिन बाद में अश्लीलता को लेकर उनसे अनबन हो गयी। मैं स्वाभिमानी हूँ और मैंने अपने आत्मसम्मान के साथ कभी समझौता नहीं किया।
(प्रस्तुति: अनूप कुमार पांडेय। आप इनसे anupkmr77@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)
बहुत कुछ छूट जा रहा है इन दिनों! छूट गयी थी यह बातचीत भी!
जवाब देंहटाएंभोजपुरी के इस साधक से परिचय शानदार रहा।
अंजन जी के गीत किसी भारत शर्मा के कंठ की मोहताज नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंअंजन जी ने जिन गीतों को लिखा वो उनके जिवन कल में ही जन कंठ की हार हो गयी।
सच में अगर आप उनके गीतों को सुने हो तो वो स्वर आप के दिल पर अंकित हो जाता है।
उन्होंने लिखा है की …..
..पतई पर पति लिख के भेजावे धरती रानिया
की भेजइहs बदरा हमके मॊति जइसन बुनिया
अच्छा है।
जवाब देंहटाएंये बात सही है- गीत ऐसा होना चाहिए जिसमे प्राण तत्त्व हो।