“चाहता तो बच सकता था
मगर कैसे बच सकता था
जो बचेगा
वह कैसे रचेगा?” [~श्रीकांत वर्मा]
परसों अवाक था मैं यह सूचना पा कि डाक् साहिब नहीं रहे। डाक्टर अमर जी एक रचैया ब्लागर थे, सिरजन से जुड़े। यह
सृजन बचते हुए नहीं चुनौती का मनमाफिक चयन करके किया जाता है। पैटर्न से विद्रोह
है इस चयन में, सृजन में। अति के सीमांत का स्पर्श भी न हो तो रचाव कैसा? अमर जी
अति के वे सीमांत स्पर्श कर लेते थे वो उन्हें रचनाकार ही बनाते थे। विरोधों का
समावेशन जरूरी होता है ऐसे जीवनों के लिए, जो उनमें था, यह भी तो गढ़ने की शर्त है।
अक्सर जिन चीजों पर ‘समझदारी’ के तहत ब्लागरों को बचते देखता था, अमर जी वहाँ पर मुखर
होते थे। संभव है इन सबकी किसी क्षण खीझ भी होती हो उन्हें और वे स्वयं को ‘समयखोटीकार’
कहकर संतोष करते हों। एक तल्खी उनकी पहचान थी, यह तल्खी माहौल की जड़ता को तोड़ती भी
थी, गति लाती थी, रचाव-गढ़ाव से जुड़ती थी।
डाक. अमर कुमार जी मेरे लिए सदैव एक टफ चरित्र के रूप
में रहे। उसी टफ-नेस के साथ गोकि अलविदा भी कह गये। अमर साब’ से आरंभिक परिचय झगड़े
के साथ रहा मेरा, एक दूसरे ब्लागर के ब्लोग पर मेरी टीप के औचित्य के सिलसिले में। तब से मेरे
वे टारगेट हुआ करते थे जिन्हें मौका मिलने पर ‘सुना देना’ मेरा अभीष्ट हुआ करता था।
एक कोल्डवार जैसा होता रहा समये-समये। मुझे यह विश्वास था कि वे मुझको लेकर काम भर
का गंस पाले हुए हैं, पर अपने इस विश्वास में भी मैने देखा कि वे अति के एक दूसरे छोर
पर मिले मुझे, मेरे लिए अप्रत्याशित! ‘चिट्ठाचर्चा’ की एक पोस्ट पर कमेंट के दौरान
उन्होंने एकाएक मुझसे पूछा : “@ अमरेन्द्र त्रिपाठी , मुझसे
दोस्ती करोगे ?” यह मेरे लिए कुछ न समझ पाने जैसा था, मैने भी सहज
ही पूछा, “यह मेरे लिए आश्चर्यजनक था , आप जिस अनुपात में मुझसे नफ़रत करते
थे , आप इस तरह कुछ लिखेंगे यह सहज अनुमेय न था , इसलिए मैं तुरंत किसी भी प्रतिक्रया पर न आया।....” जवाब उनका मेरे
मेल पर आया था, जिसे इस बीच पुनः देखना हुआ:
इसके बाद बड़े सहज
भाव से हम लोगों ने एक दूसरे की ब्लोग-पोस्टें पढ़ीं, सवाल किए, जवाब आए।
मैं बहुत बाद में
जाना कि डाक् साहिब की अवधी में धारा-प्रवाह गति है, अवधी पोस्टों पर उनके कमेंट भी
अवधी में ही होते थे, अक्सर जैसा कि उनका स्वभाव था कि वे करने भर के लिए कमेंट नहीं
करते थे, इसलिए प्रति-टीप लिखने के लिए आमंत्रण भी रहता था उनकी टीप में, उनसे टीप-प्रतिटीप-चर्चा
भी हुई है, मुख्य रूप से अवधी भाषा में। यह मेरे लिए सर्वाधिक खुशी का क्षण होता था(है)
जब किसी से देशभाषा में संवाद करता हूँ। अगर रायबरेली जाने का तुक कभी बना होता तो
जिससे मैं जरूर मिलना चाहता तो वे डाक् साहिब होते। संतोष त्रिवेदी जी जब जाने लगे
थे तो मैंने उनसे आग्रह किया था कि वे उनसे अवश्य मिलें, वे मिले, और मिलने के बाद
फोन पर संक्षेप में बताया भी था अपनी मुलाकात के बारे में।
डाक् साहिब अपने
कमेंट की वजह से जाहिर हो जाते थे। उनका कमेंट बहुधा इटैलिक में लिखा होता था। बड़ी दिलेरी के साथ कमेंट लिखते थे, सामने वाला समझे-समझाए, अपनी जगह जो रुचा उन्होंने लिखा।
कुछ बिदकन-शील प्रजाति के जीव बिदके, बिदकते रहें अपनी बला से। एकाध ब्लोग पर देखा
कि डाक् साहिब को ब्लागर ने कहा कि वे उसके ब्लोग पर ‘बैन’ किए जाते हैं पर डाक्
साहिब ने वहाँ आगे भी अपने कमेंट दिए, उन्हें खूब पता होता था कि उन्हें क्या करना
है, बाहर से उनकी प्रतिक्रियाएँ उन्हें अस्थिर दिखाएँ वह अलग बात! अक्सर मोडरेसन को
लेकर वह काली पट्टी तक कमेंट में छाप देते थे, यह उनकी विश्व-स्तरीय माँग थी, जिसे
उन्होंने अतिवादी व दृढ़तर ढ़ंग से भी रखा।
आज डाक् साहिब
सशरीर हमारे बीच नहीं हैं। जो चीज आने वाले समय में हिन्दी ब्लोगिंग में अखरेगी वह
है एक सोच-समझ वाले टीपकार का अभाव। हिन्दी ब्लोगिंग वैसे भी इधर एकाध वर्ष से अज्ञान-मण्डल
से अधिक घिरती रही है। सोच-समझ की कमी के इस माहौल में अमर जी दीवार की तरह थे, विरोध
सहकर भी वे अपना धर्म निभाए जा रहे थे, पर दुर्भाग्यपूर्णता यही है कि समर्पित स्तंभ
शीघ्र ढह जाते हैं। एक अपूर्णीय क्षति हिन्दी ब्लोग-जगत सदैव महसूस करेगा।
इस
दुख की घड़ी में मैं डाक् साहिब के लिए विनम्र श्रद्धांजलि व्यक्त करता हूँ और उनके
घर वालों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह उन्हें शक्ति-संबल दे।
*****
नोट:
‘अति’ शब्द को मैंने सकारात्मकता से साथ प्रयोग किया है, जिसमें एकरस परिवेश के विरुद्ध
सृजन के उत्स भी होते हैं!
डॉ.अमर पर आपकी यह संस्मरणात्मक पोस्ट कुछ अधिक पहले नहीं आ गयी अमरेन्द्र जी? थोड़ा मैं भी इसी मोड में आ गया था ,पर बचा और उन्हें श्रद्धांजली व्यक्त की -अब उनके लिए हमारे पास बस यही भाव हैं....
जवाब देंहटाएंबाकी तो देवेन्द्र पाण्डें जी भी उनकी टिप्पणी के लिए तरसते भये और पीड़ा मेरी पोस्ट पर मुखर हो आयी है ....
अब इन बातों से ऊपर हमें अभी तो अपनी श्रेष्ठ परम्पराओं के अनुरूप उनके दैहिक अवसान से जुड़े कर्मकांडों पर केन्द्रित रहना है ...
वे ब्लागजगत में कितने प्रभावी रहे यह झलक उन पर लिखी जा रही अनेक पोस्टों से मिल रही है -और यह भी तनिक भी असंगत नहीं कि उनसे मेरी घनिष्ठता ज्यादा थी की दावे किये जायं - जिन्दा बची मानवता ऐसे ही प्रपंच करती आयी है .... :)
अमरेन्द्र भाई ,डॉ . साहब का जाना एक ब्लॉगर या एक इंसान भर का जाना नहीं है ....ई हमरे लिए दुहरका नुकसान हवे .उनके जाये से इंसानी -ब्लॉगर चला गया जो जिंदादिल और बेख़ौफ़ था .वह ऐसे लंगोटिया यार की तरह थे कि तनिक मौका मिला नहीं कि दोस्त की लांग ही ढीली कर देते थे .ऐसी चुहलबाजी में उन्हें बड़ा मज़ा आता था ,वे चलते बैल को अरी मारने वाले मनई थे .यह सब तभी होता है जब आप किसी से गहरा लगाव रखते हैं . वे टीपने भर के लिए नहीं टीपते थे .
जवाब देंहटाएंआपने जिस तरह से संतुलित समालोचना की है , उससे आपमें डॉ . साहब के असली शिष्य और वारिस की झलक मिलती है .
डॉ . साहब से उनके आखिरी समय में मै मिलकर धन्य हो गया .उनकी स्मृति को सादर नमन !
डा.साहब के चले जाने का बहुत अफ़सोस है।
जवाब देंहटाएंआज उनकी तमाम पोस्टें फ़िर से पढ़ीं। तुम से हुई नोक-झोंक वाली टिप्पणियां भी। वे सब तात्कालिक टिप्पणियां थीं। ऐसा होना नितांत सहज था।
डा.अमर कुमार एक खूबी यह भी थी कि वे संबंधों के मामले में कभी भी ऐसी स्थिति तक नहीं पहुंचते थे कि संवादहीनता बनी रहे। संभव है आप उनसे लड़भिड़कर गुमान में बैठे हो और वे आपको किसी अटपटी टिप्पणी से आपको गुदगुदा दें। आप मुस्करा दें या झल्लाने लगे। आपकी प्रतिक्रिया कुछ भी हो लेकिन उनकी संवादहीनता खतम करने की "साजिश" सफ़ल हो चुकी होती थी।
डा.अमर कुमार एक बेहतरीन इंसान थे। उनकी कमी हमेशा खलेगी।
एक अच्छी संस्मरणात्मक पोस्ट!
**वे चलते बैल को अरी मारने वाले मनई थे..
जवाब देंहटाएंअरी की जगह **अरई होगा ! त्रुटि-सुधार !
लगता है कोई अपना हमें छोड़ कर चला गया है, मगर वे हिंदी ब्लॉग जगत में अपने निशान छोड़ गए हैं जो अमर रहेंगे !
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में डॉ अमर कुमार की कमी बहुत खलेगी !
जाना तो सबने है, अफ़सोस है कि वे समय से बहुत पहले चले गए ....भगवान उनके बच्चों को व अन्य प्यारों को सहनशक्ति दे !
स्व. डॉ साहिब ने जो जगह हम सभी के दिलों में बनाई थी... वो आसानी से नहीं भरने वाली.
जवाब देंहटाएंपरमपिता परमेश्वर उनको अपने चरणों में जगह दें.
डा. अमर कुमार जी को श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंडॉ. अमर कुमार जी को श्रृद्धांजलि...
जवाब देंहटाएंguruwar ke prati blog jagat me pratikriya dekhkar bas yehi kah
जवाब देंहटाएंsakte hain ke 'o mat-bhed ko man-
bhed' kabhi....kisi se na ban-ne
diya..........
aapne bahut achhe dhang se apni
baat kahi
guruwar ko hardik subhkamnayen.....
sadar.
सच कहा दोस्त !...उनकी कमी अखरेगी..बहुत ज्यादा ! गुणी पढ़े लिखे तार्किक लोग तो बहुत होते है..पर ईमानदार ओर स्नेही नहीं !
जवाब देंहटाएंउनके जैसे कोई और दिखता नहीं मुझे हिंदी ब्लॉग्गिंग में. उनकी कमी बहुत खलेगी.
जवाब देंहटाएंबहुत मन से आपने ये लिखा है... बुरी तरह याद दिला गए... उनके दिमाग की खिड़की खुली रहती थी. अपनी गलती मानने और नयी चीजें सुनने को तैयार रहते थे. सबसे बड़ी बाद वे पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं थे.
जवाब देंहटाएंडा. अमर कुमार जी के चले जाने से जो शून्य उत्पन्न हो गया है...वो कभी भर नहीं पायेगा और उनकी कमी हमेशा खलेगी..
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि
बहुत अच्छे इंसान को खो देना बहुत दुखदायी है।
जवाब देंहटाएंकैसे-कैसे लोग रुख़सत कारवां से हो गये
कुछ फ़रिश्ते चल रहे थे जैसे इंसानों के साथ।
कमी तो अखरेगी..मेरे लिए यह एक परिवारिक क्षति है..ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे. विनम्र श्रृद्धांजलि!!
जवाब देंहटाएंडा0अमर की टिप्पणियाँ ब्लॉगिंग के सबसे महत्वपूर्ण पहलू को उजागर करती हैं। कोई ब्लॉगर कैसे अपने पोस्ट से अधिक दूसरों के पोस्ट पर की जाने टीप से ख्याति प्राप्त कर सकता है और मर कर भी अमर हो जाता है, यह इसका ज्वलंत उदाहरण है। वे हम सभी के लिए प्रेरक बन चुके हैं। हम यदि अपने कमेंट में इस बात का ध्यान रखें तो निःसंदेह हिंदी ब्लॉगिंग का भला होगा और डा0 अमर के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी।
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के बारे में यही कहा जा सकता है कि...
दिल से लिखी दिलदार की बातें
तकरार में थीं प्यार की बातें
जीत की बातें, हार की बातें
अमर रहेंगी यार की बातें।
kisi kaa chale jana par laut kar naa aanaa
जवाब देंहटाएंdukh hi daetaa haen
हार्दिक दुख है, आज आपका यह आलेख पढ़ पाया हूँ. जिस महामना का जिक्र हुआ है, काश उनसे साक्षात् भेंट हुई होती.
जवाब देंहटाएंआपकी लेखिनी ने बहुत कुछ कहा और बताया है.
मेरी विनम्र श्रद्धांजलि.
-- सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उ.प्र.)
डाक्टर अमर अपनी विशिष्ट शैली के लिए हमेशा याद लिए जायंगे ब्लॉग जगत में ..
जवाब देंहटाएंहमारी विनम्र श्रधांजलि है ... भगवान उनके परिवार को दुःख सहने की शक्ति दे ...
मर्मस्पर्शी रचना/////////
जवाब देंहटाएंटफ चरित्र वाले डाक. अमर कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजलि......!!!!! एक भले व्यक्तिव पर लिखा गया एक पावन लेख.......हिन्दी ब्लोगिंग को ऐसे सृजकों और मनीषी ब्लोगर्स की जरूरत है.....!!!!!!
पहले घर में , प्रवेश करते ,
जवाब देंहटाएंएक मैना चहका करती थी
चीं चीं करती, मीठी बातें
सब मुझे सुनाया करती थी
जबसे वह विदा हुई घर से, हम लुटे हुए से बैठे हैं !
टकटकी लगाये रस्ते में , घर के दरवाजे बैठे हैं !
मोहक रचना..... मैं भी नॉएडा में ही हूँ......कभी मिल बैठते हैं my mob 9810610079 !!!!!!
डॉ.अमर कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजलि!!
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि !!!!
जवाब देंहटाएंईश्वर उनके घर वालों को शक्ति और संबल दे।
आज पता नहीं क्यों यह अच्छा ही लग रहा है कि उनसे व्यक्तिगत संवाद स्थापित न हुआ...हुआ होता तो और अधिक कष्ट होता...