बुधवार, 5 दिसंबर 2012

वह नब्बे का दौर, रामजन्मभूमि-बाबरी मसजिद और कुछ यादें

मेरा यह आलेख बी.बी.सी.-हिन्दी पर कल प्रस्तुत किया गया था। इसका शुरुआती अल्प-अंश यहाँ रख रहा हूँ, बाकी हिस्सा आप बी.बी.सी.-हिन्दी पर जा कर पढ़ सकते हैं। अंत में लिंक भी रखा गया है। : संपादक     _______________________ 

नब्बे के दौर के शुरुआती साल और उनमें बना माहौल 7-8 साल के हमउम्र दोस्तों के लिए बड़ा अबूझ था. हमारे जिले फैजाबाद की फिजा में ऐसा बहुत कुछ घट रहा था जो हम बच्चों के लिए नया नया था जिसे हम कौतूहल के साथ देखते और सुनते भर थे.

स्कूल आते-जाते हुए हम बसों में कारसेवकों को अयोध्या की ओर जाते हुए देखते थे.

वो तेज आवाज में कई नारे लगाते हुए जाते थे जो अभी भी यादों में हैं. राम की नगरी में ही हमें नारों में सुनाया जाता था- 'बच्चा-बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का'

अयोध्या से आठ कोस दूर गाँव में रहते थे, राम को बहुत छुटपन से ही जानते थे लेकिन यह 'जन्मभूमि' हमारे लिए नई जगह थी. गाँव के लोग 'नहान' पर अयोध्या सरयू में डुबकी लगाने जाते थे, परिक्रमा जाते थे, हनुमान गढ़ी जाते थे लेकिन जन्मभूमि का परिचय हमें रेडियो, अखबारों और कारसेवकों से मिला.

आगे पढ़ने के लिए बी.बी.सी-हिन्दी के इस लिंक पर जाएँ: http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/12/121204_babri_demolition_memoirs_sdp.shtml 

वाया बी.बी.सी यह आलेख छत्तीसगढ़ राज्य के अखबार ‘छत्तीसगढ़’   (दिनांक4-12-12, पृ 13 व 10) में भी प्रकाशित हुआ है। 

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