कुछ देर पहले सूचना मिली कि कथाकार अरुण प्रकाश का लम्बी बीमारी के बाद दिल्ली के पटेल चेस्ट हास्पिटल में निधन हो गया है. इस समाचार से दुखी हूँ! मेरी एक बार मुलाक़ात हुई थी अरुण प्रकाश जी से. २००५ में. साहित्य अकादमी में, अभय जी उनसे मिलने गए थे और उनके साथ होने के कारण मैं भी गया हुआ था. उन दिनों एम्.फिल. इंट्रेंस के साक्षात्कार के लिए शोध-प्रारूप बनाना था. इसके लिए मैंने कवि धूमिल की कविता को चुना था. मिलने के दौरान मैंने अरुण जी की मेज पर कवि धूमिल पर केन्द्रित एक पत्रिका का विशेषांक देखा, इजाजत से विशेषांक लेकर उसे पढने में तल्लीन हो गया. अभय जी और अरुण जी बात करते रहे. चलने का समय हुआ तो उन्होंने किताब में खोया हुआ देखकर मुझसे पूछा कि जरूरत है क्या तुम्हें इस अंक की. मैंने अपनी स्थिति बतायी. उन्होंने वह अंक मुझे खुशी-खुशी दे दिए. यह अंक अभी भी मेरे पास किताबों के बीच कहीं है. इस वक्त मुझे इस अंक के मुखपृष्ठ पर छपा कवि धूमिल का प्रभापूर्ण फोटो याद आ रहा है और अरुण जी के साथ की गयी बातचीत, उनका चेहरा! बाद में कभी न मिल पाने की कचोट भी है. इस दुखद घड़ी में ईश्वर उनके परिवार जनों को सहारा दे. विनम्र श्रद्धांजलि!
अरुण जी को हार्दिक श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएं...इनके बारे में यहाँ भी देखें :
www.yugjamana.org
हिंदी जगत ने एक बड़ा कथाकार खो दिया।
जवाब देंहटाएं..विनम्र श्रद्धांजलि।
अरुणजी को विनम्र श्रद्धांजलि..
जवाब देंहटाएंपहली और आखिरी मुलाकात में वो मुझे बहुत ही प्रभावी लगे.
जवाब देंहटाएंअरुणजी को विनम्र श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंअरुण जी को विनम्र श्रद्धांजलि....!
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